जनवरी 2025
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श्रावण मासकी 'कामिका' और 'पुत्रदा' एकादशीका माहात्म्य
युधिष्ठिरने पूछा - गोविन्द ! वासुदेव ! आपको नमस्कार है! श्रावणके कृष्णपक्षमें कौन-सी एकादशी होती है ? उसका वर्णन कीजिये |
भगवान् श्रीकृष्ण बोले - राजन् ! सुनो, मैं तुम्हें एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकालमें ब्रह्माजीने नारदजीके पूछनेपर कहा था।
नारदजीने प्रश्न किया - भगवन् ! कमलासन ! मैं आपसे यह सुनना चाहता हूँ कि श्रावणके कृष्णपक्षमें जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है, उसके कौन-से देवता हैं तथा उससे कौन-सा पुण्य होता है ? प्रभो! यह सब बताइये।
ब्रह्माजीने कहा- नारद ! सुनो- मैं सम्पूर्ण लोकोंके हितकी इच्छसे तुम्हारे प्रश्नका उत्तर दे रहा हूँ। श्रावणमासमें जो कृष्णपक्षकी एकादशी होती है, उसका नाम 'कामिका' है। उसके स्मरणमात्रसे वाजपेय यज्ञका फल मिलता है। उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामोंसे भगवानका पूजन करना चाहिये | भगवान् श्रीकृष्णके पूजनसे जो फल मिलता है, वह गङ्गा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्रमें भी सुलभ नहीं है। सिंहराशिके बृहस्पति होनेपर तथा व्यतीपात और दण्डयोगमें गोदावरीस्रानसे जिस फलकी प्राप्ति होती है, वही फल भगवान् श्रीकृष्णके पूजनसे भी मिलता है। जो समुद्र और वनसहित समूची पृथ्वीका दान करता है तथा जो कामिका एकादशीका व्रत करता है, वे दोनों समान फलके भागी माने गये हैं। जो ब्यायी हुई गायको अन्यान्य सामग्रियोंसहित दान करता है, उस मनुष्यको जिस फलकी प्राप्ति होती है, वही 'कामिका' का व्रत करनेवालेको मिलता है। जो नरश्रेष्ठ श्रावणमासमें भगवान् श्रीधरका पूजन करता है, उसके द्वारा गन्धर्वो और नागोंसहित सम्पूर्ण देवताओंकी पूजा हो जाती है। अतः पापभीरु मनुष्योंको यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करके 'कामिका'के दिन श्रीहरिका पूजन करना चाहिये। जो पापरूपी पङ्कसे भरे हुए संसारसमुद्रमें डूब रहे हैं, उनका उद्धार करनेके लिये कामिकाका व्रत सबसे उत्तम है | अध्यात्मविद्यापरायण पुरुषोंको जिस फलकी प्राप्ति होती है। उससे बहुत अधिक फल 'कामिका' व्रतका सेवन करनेवालोंको मिलता है। 'कामिका'का व्रत करनेवाला मनुष्य रात्रिमें जागरण करके न तो कभी भयङ्कर यमराजका दर्शन करता है और न कभी दुर्गतिमें ही पड़ता है।
लाल मणि, मोती, वैदूर्य और मूँगे आदिसे पूजित होकर भी भगवान् विष्णु वैसे संतुष्ट नहीं होते, जैसे तुलसीदलसे पूजित होनेपर होते हैं । जिसने तुलसीकी मञ्जरियोसे श्रीकेशवका पूजन कर लिया है, उसके जन्मभरका पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है । जो दर्शन करनेपर सारे पापसमुदायका नाश कर देती है, स्पर्श करनेपर शरीरको पवित्र बनाती है, प्रणाम करनेपर रोगोंका निवारण करती है, जलसे सींचनेपर यमराजको भी भय पहुँचाती है, आरोपित करनेपर भगवान् श्रीकृष्णके समीप ले जाती है और भगवानके चरणोंमें चढ़ानेपर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवीको नमस्कार है।* जो मनुष्य एकादशीको दिन-रात दीपदान करता है, उसके पुण्यकी संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते। एकादशीके दिन भगवान् श्रीकृष्णके सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोकमें स्थित होकर अमृतपानसे तृप्त होते हैं। घी अथवा तिलके तेलसे भगवानके सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह-त्यागके पश्चात् करोड़ों दीपकोंसे पूजित हो स्वर्गलोकमें जाता है।
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं - युधिष्ठिर ! यह तुम्हारे सामने मैंने कामिका एकादशीकी महिंमाका वर्णन किया है | 'कामिका' सब पातकोंको हरनेवाली है, अतः मानवोंको इसका व्रत अवश्य करना चाहिये। यह स्वर्गलोक तथा महान् पुण्यफल प्रदान करनेवाली है। जो मनुष्य श्रद्धाके साथ इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह सब पापोसे मुक्त हो श्रीविष्णुलोकमें जाता है।
युधिष्ठिरने पूछा - मधुसूदन |श्रवणके शुक्ल-पक्षमें किस नामकी एकादशी होती है ? कृपया मेरे सामने उसका वर्णन कीजिये।
भगवान् श्रीकृष्ण बोले - राजन् ! प्राचीन कालकी बात है, द्वापर युगके प्रारम्भका समय था, माहिष्मतीपुरमें राजा महीजित् अपने राज्यका पालन करते थे, किन्तु उन्हें कोई पुत्र नहीं था, इसलिये वह राज्य उन्हें सुखदायक नही प्रतीत होता था । अपनी अवस्था अधिक देख राजाको बड़ी चिन्ता हुई। उन्होने प्रजावर्गमें बैठकर इस प्रकार कहा- 'प्रजाजनो | इस जन्ममें मुझसे कोई पातक नहीं हुआ। मैंने अपने खजानेमें अन्यायसे कमाया हुआ धन नहीं जमा किया है। ब्राह्मणों और देवताओंका धन भी मैंने कभी नहीं लिया है। प्रजाका पुत्रवत् पालन किया, धर्मसे पृथ्वीपर अधिकार जमाया तथा दुष्टोंको, वे बन्धु और पुत्रोंके समान ही क्यों न रहे हों, दण्ड दिया है। शिष्ट पुरुषोंका सदा सम्मान किया और किसीको द्वेषका पात्र नहीं समझा । फिर क्या कारण है, जो मेरे घरमें आजतक पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ। आपलोग इसका विचार करें।'
राजाके ये वचन सुनकर प्रजा और पुरोहितोंके साथ ब्राह्मणोंने उनके हितका विचार करके गहन वनमें प्रवेश किया। राजाका कल्याण चाहनेवाले वे सभी लोग इधर-उधर घूमकर ऋषिसेवित आश्रम की तलाश करने लगे। इतनेहीमें उन्हें मुनिश्रेष्ठ लोमशका दर्शन हुआ। लोमशजी धर्मके तत्त्वज्ञ, सम्पूर्ण शास्त्रोंके विशिष्ट विद्वान् , दीर्घायु और महात्मा हैं।
उनका शरीर लोमसे भरा हुआ है। वे ब्रह्माजीके समान तेजस्वी हैं। एक-एक कल्प बींतनेपर उनके शरीरका एक-एक लोम विशीर्ण होता - टूटकर गिरता है, इसीलिये उनका नाम लोमश हुआ है। वे महामुनि तीनों कालोंकी बातें जानते हैं। उन्हें देखकर सब लोगोंको बड़ा हर्ष हुआ | उन्हें निकट आया देख लोमशजीने पूछा - 'तुम सब लोग किसलिये यहाँ आये हो ? अपने आगमनका कारण बताओ । तुमलोगोंके लिये जो हितकर कार्य होगा, उसे मैं अवश्य करूँगा |
प्रजाओंने कहा - ब्रह्मन् ! इस समय महीजित् नामवाले जो राजा है, उन्हें कोई पुत्र नहीं है। हमलोग उन्हींकी प्रजा हैं, जिनका उन्होंने पुत्रकी भाँति पालन किया है। उन्हें पुत्रहीन देख, उनके दुःखसे दुःखित हो हम तपस्या करनेका दृढ़ निश्चय करके यहाँ आये हैं। द्विजोत्तम ! राजाके भाग्यसे इस समय हमें आपका दर्शन मिल गया है। महापुरुषोंके दर्शनसे ही मनुष्योंके सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं। मुने ! अब हमें उस उपायका उपदेश कीजिये, जिससे राजाको पुत्रकी प्राप्ति हो ।
उनकी बात सुनकर महर्षि लोमश दो घड़ीतक ध्यानमम्न हो गये। तत्पश्चात् राजाके प्राचीन जन्मका वृत्तान्त जानकर उन्होंने कहा-'अजावुन्द | सुनो- राजा महीजित् पूर्वजन्ममें मनुष्योंको चूसनेवाला धनहीन वैश्य था। वह वैश्य गाँव-गाँव घूमकर व्यापार किया करता था । एक दिन जेठके शुक्लपक्ष दशमी तिथिको, जब दोपहरका सूर्य तप रहा था, वह गाँवकी सीमामें एक जलाशयपर पहुँचा | पानीसे भरी हुई बावली देखकर वैश्यने वहाँ जल पीनेका विचार किया । इतनेहीमें वहाँ बछड़ेके साथ एक गौ भी आ पहुँची । वह प्याससे व्याकुल और तापसे पीड़ित थी, अतः बावलीमें ' जाकर जल पीने लगी । वैश्यने पानी पीती हुई गायको हाँककर दूर हटा दिया और स्वयं पानी पीया। उसी पाप-कर्मके कारण राजा इस समय पुत्रहीन हुए हैं। किसी जन्मके पुण्यसे इन्हें अकण्टक राज्यकी प्राप्ति हुई है ।
प्रजाओने कहा - मुने ! पुराणमें सुना जाता है कि प्रायश्चित्तरूप पुण्यसे पाप नष्ट होता है; अतः पुण्यका उपदेश कीजिये, जिससे उस पापका नाश हो जाय।
लोमशजी बोले - प्रजाजनो ! श्रावण मासके शुक्लपक्षमें जो एकादशी होती है, वह 'पुत्रदा'के नामसे विख्यात है। वह मनोवाञ्छित फल प्रदान करनेवाली है। तुमलोग उसीका व्रत करो।
यह सुनकर प्रजाओंने मुनिको नमस्कार किया और नगरमें आकर विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी के व्रतका अनुष्ठान किया । उन्होंने विधिपूर्वक जागरण भी किया और उसका निर्मल पुण्य राजाको दे दिया ।तत्पश्चात रानीने गर्भ धारण किया और प्रसवका समय आनेपर बलवान् पुत्रको जन्म दिया |
इसका माहात्म्य सुनकर मनुष्य पापसे मुक्त हो जाता है तथा इहलोकमें सुख पाकर परलोकमें स्वर्गीय गतिको प्राप्त होता है।
*या दुष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी
रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी |
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता
न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः॥ (५६।२२)